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उपन्यास >> नम्बरदार हुआ नाखुदा

नम्बरदार हुआ नाखुदा

विजय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7723
आईएसबीएन :978-81-263-1869

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विजय का नया उपन्यास है, जिसमें मुख्यधारा से लेकर हाशिये पर जी रही स्त्रियों की मर्मस्पर्शी दास्तान है...

Nambardar Huaa Nakhuda - A Hindi Book - by Vijay

कथाकार विजय की रचनाओं में महानगरीय अनुभवों का समावेश होता है। ‘नम्बरदार हुआ नाख़ुदा’ विजय का नया उपन्यास है, जिसमें मुख्यधारा से लेकर हाशिये पर जी रही स्त्रियों की मर्मस्पर्शी दास्तान है। समाजसेवी संस्थाएँ, राजनैतिक दल और मनुष्यता का दम भरती शक्तियाँ कितने मुखौटे चढ़ाये हैं, इसे विजय ने बखूबी चित्रित किया है। ‘दिल्ली’ कथा के केन्द्र में है। स्वाभाविक है राजनीति का बारीक अध्ययन उपन्यास को एक ख़ास तेवर प्रदान करता है।

विजय ने इस उपन्यास को समकालीन स्त्री के संघर्षों और विचलनों का दस्तावेज बना दिया है। ‘नम्बरदार हुआ नाख़ुदा’ की विशेषता यह भी है कि लेखक ने समाज का एक तटस्थ मूल्यांकन किया है। विमर्शों की अतिवादिता से यह उपन्यास मुक्त है। आज के जीवन की अनेकानेक समस्याओं पर कथाकार की पैनी नज़र है। विजय ने स्वार्थ के बढ़ते प्रकोप का विवरण इस तरह दिया है कि वह व्यंग्य के नये लेखकीय आयाम उद्घाटित करता है। एक पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास।

विजय


जन्म : 6 दिसम्बर, 1936 को आगरा (उ.प्र.) में।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से निवृत्ति के बाद अब स्वतंत्र लेखन।

प्रकाशित कृतियाँ : कहानी संग्रह - ‘हथेलियों का मरुस्थल’, ‘जंगल बबूल का’, ‘बौ सुरीली’, ‘नीलकण्ठ चुप हैं’, ‘गंगा और डेल्टा’, ‘अभिमन्यु की तलाश’, ‘किले’, ‘गमन’, ‘घोड़ा बाजार’, ‘गाथा’, ‘पोस्टर से झाँकते चेहरे’ और ‘जझद’। ‘इनाम और जुर्माना’, ‘सलौनी का जिद’ और ‘गाँव की बेटी’ - तीन बाल-कृतियाँ भी प्रकाशित।
उपन्यास : ‘साकेत के यूकलिप्टस’, ‘सीमेण्ट नगर’, ‘लौटेगा अभिमन्यु’, ‘नीड़ का तिमिर’ और ‘मुक्तिबोध’।
उर्दू और अँग्रेजी में अनूदित कई कहानियाँ देश-विदेश में प्रकाशित। समीक्षा कर्म में रुचि।
सम्पर्क : 115 बी, पॉकेट जे एण्ड के, दिलशाद गार्डन, दिल्ली।


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